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पतंगें
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पतंगें जो उड़ रही थी
ख्वाब की डोरी पे सध के
आसमां को जोडती थीं
दूर तारे तोड़ती थीं
दांव पेचों में कटी हैं
हाथ बस डोरें बची हैं
दो पतंगें दो सिरे थे
दोनों तरफ इंसान थे !
Categories:
poetry